बदलता सियासत का चक्का,सत्ता की विश्वसनीयता खिसकी

हाथरस वो भी था आज ये भी हैं वो राहुल और ये राहुल

बस समय का पहिया हैं घूमता हैं घुमाता हैं कभी शक्ति का असंतुलन तो कभी संतुलन के फेर मैं पड़ा समय हैं बड़ा हरजाई,ये मीत किसी का नहीं बस अपने हिसाब से घूमता हैं और पूरे विश्व को घुमाता हैं । पहिये की नियति हैं घूमना बस परिवर्तन की यात्रा पर इसका सफ़र

थोड़ा सा सुस्ताने के बहाने रुक जाता हैं,की साँस ले सके,परिवर्तन को देखने भर की फ़ुरसत नहीं इसको,बस छोड़ देता हैं फ़ैसले जनता पर,बुद्धिजीवियों पर अपने आपको समीक्षात्मक बना लेता हैं।

कुछ दिन बस यादें हैं एक रात की कुछ ढुआ सा उठता हुआ खेतों से,दारोग़ाई और पुलसिया अकड़ और जलती हुई एक अवला की चिता जो आनन फ़ानन मैं तैयार कर जला दी गई,

मुए लोग भी ऐसे की सोशल मीडिया पर वायरल हो गई तस्वीर,शक्तिशाली राजा से सवालों के दौर चल निकले । कोई रह चलते ज़िक्र कर लेता तो कोई सोशल मीडिया पर चित्रों को डाल अपनी अभिव्यक्ति इस कुकर्म पर व्यक्त कर देता।

आज़ाद आवाज़ों का देश भारत लेकिन राष्ट्रीय चैनल इसे मुद्दा न बनाते,बस एक आह सी निकलती और लोगो को दूसरी ख़बरों के जाल मैं उलझाते हुए सरकार के दरबार मैं राग दरबारी गा गा कर इतराते,

आख़िर पापी पेट का जो सवाल था,यहाँ कहाँ मानवता और लोकतंत्र की बात बहुमत मैं आयी सरकार के बहुमद के सामने विपक्ष तो कर्तव्य विमूढ़ जो था।

हाथरस की घटना
एक वो हाथरस था और एक ये हाथरस है

वो हाथरस क्या सुधार पाया ?

काश उस रात से कुछ सीखा होता तो तब के हाथरस और अब के हाथरस मैं अंतर आया होता। कुछ तो सुधरा था,तब के हाथरस मैं एक नेता को पुलिस अधिकारी ने धक्का दे गिरा दिया था।

हाथरस मैं तब विपक्षियों को शांति का हवाला दे कर घुसने नहीं दिया गया था,राष्ट्रीय चैनल सरकार के वकील बन खूब ख़बरों को नचा रहे थे।

वो ऐसा था जैसे जानता से,पीड़ित से मिलने जा रही विचारधारा को धक्का दे गिरा दिया गया था,ख़ाकी की शक्ति सर्वथा हैं उसके महत्व को नकार पाना आसान नहीं,रस्सी को साँप और साँप को रस्सी बनाने की ट्रेनिंग अग्रेजो के काल से ही हैं।

आज़ादी ज़रूर मिली लेकिन देश के राजनैतिक दल अग्रेजो की छोड़ी व्यवस्था मैं सुधार नहीं कर पाये।

वो धक्का खूब चर्चा मैं रही आख़िर ऐसे नेता को धक्का दिया गया था जिसके परिवार मैं तीन पूर्व प्रधानमंत्री रहे थे जिनमे दो ने देश की एकता और अखंडता के लिए सर्वोच्च बलिदान दिया था।

और अब के हाथरस मैं जो हुआ वो दर्दनाक था,दोष किसी राजनैतिक दल का नहीं प्रशासन क्षमता का था,उस स्वरूप का था ,जिसमें केवल ख़ानापूर्ति की जाती हैं,कागजो पर स्याही स्याही दस्तख़तों का खेल चलता हैं और बस इति श्री।

देश मैं धार्मिक गुरुओं की कोई कमी नहीं अब तो नेता भी धर्म के भगवा कपड़े पहन फ़ोटो सेल्फ़ी खिंचवाते मिल जाएँगे उनकी छोड़ी देश के युवा भगवा पहन उग्र राष्ट्रवाद के नायक बन जाते हैं

हाथरस आयोजन मैं लोगो की मौत,बहुत कुछ बताती हैं जिसके बारे मैं सोशल मीडिया पर काफ़ी बहस हो चुकी हैं। एक बार बो नेता जिसे हाथरस आने से रोका गया था इस बार नेता विपक्ष के रूप मैं हाथरस पीड़ितो से मिलता हैं संवेदनाये देता हैं,

किसी को गोद मैं तो किसी माँ को गले लगा कर सांत्वना देता हैं स्टूल को अलग कर लोगो के सामने ज़मीन पर बैठ जाता हैं।

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